ज्योतिबा फुले
ज्योतिबा फुले
ज्योतिबा फुले, 19वीं सदी के भारतीय समाजसेवी, शिक्षाप्रेमी, और जातिवाद के खिलाफ उठने वाले पहले महान आंदोलनों में से एक के नेता थे। उनका जीवन एक लड़ाई का सफर था, जो समाज में बदलाव और समाजिक न्याय की मांग करता रहा है।प्रारंभिक जीवन: ज्योतिबा फुले का जन्म 11 अप्रैल 1827 को महाराष्ट्र के सतारा जिले के कानडपूर गाँव में हुआ था। उनका परिवार कुनबी जाति से था और उनके परिवार में आर्थिक समस्याएं थीं। ज्योतिबा का शिक्षार्थी जीवन विशेष रूप से मुश्किल था, लेकिन उन्होंने अपनी मेहनत और आत्मविश्वास के साथ अध्ययन किया।समाजसेवा का पहला कदम: ज्योतिबा ने शिक्षा में उच्चतम स्तर तक पहुंचने के बाद समाज की समस्याओं को समझना शुरू किया। उन्होंने जातिवाद, असमानता, और उत्पीड़न के खिलाफ अपने विचार प्रकट किए और समाज में बदलाव की आवश्यकता को सुझाया।'सत्यशोधक समाज' की स्थापना: 1855 में, ज्योतिबा ने 'सत्यशोधक समाज' की स्थापना की, जिसका मतलब था "सत्य की खोज करने वाला समाज"। इस समाज का उद्देश्य जातिवाद और असमानता के खिलाफ उठना था और इसने समाज में जागरूकता बढ़ाने के लिए कई कार्यक्रम आयोजित किए।शिक्षा क्षेत्र में योगदान: ज्योतिबा फुले ने शिक्षा को एक महत्वपूर्ण और सकारात्मक शक्ति माना और उन्होंने 1867 में 'पूने मराठा विद्यापीठ' की स्थापना की। इससे पहले, लड़कियों के लिए शिक्षा का कोई संस्थान नहीं था, लेकिन ज्योतिबा ने इसे बदला और महिलाओं को शिक्षित बनाने के लिए अपना समर्थन दिखाया।महात्मा फुले और सावित्रीबाई फुले: ज्योतिबा फुले का संघर्ष एकल नहीं था। उनकी पत्नी, सावित्रीबाई फुले, भी समाजसेवी और शिक्षिका थीं जो उनके साथ मिलकर समाज में बदलाव के कारणों में योगदान करती रहीं।
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